History of Mira Bhayander . राजन वासु नायर ।

मिरा भार्इदर की समस्यायें एवं उसका निराकरण    
     

             अपने शहर मिरा भार्इदर की समस्याओं के समाधान के लिए सर्वप्रथम अपने देश की आजादी से लेकर अबतक की अपने शहर की जानकारी आवश्यक है| आजादी के पूर्व मिरा भार्इदर को तत्कालीन शासको( अंग्रेजो ) ने नमक की खेती के लिए उपयुक्त माना था | उस समय मिरा भार्इदर में चेणा गाँव, काशी गाँव, घोडबंदर गाँव, पेणकर पाडा, नवघर, भार्इदर, रार्इ, मुर्धा एवं उत्तन गाँव थे | इन सारे गाँवो को मिलाकर लगभग 3800 मकान थे | उत्तन विभाग में एंग्लो इंडियन, चेणा गाँव, काशीगाँव एवं मिरा गाँव आदिवासी बहुल तथा शेष बचे हुए गाँव में अगरी समाज के लोग रहते थे | उस समय इन लोगों के मकान मिठी के बने होते थे | इन लोगों का मुख्य व्यवसाय मच्छी मारना एवं नमक उत्पादन था | अपने जीवन यापन के लिए यहाँ के निवासी मुख्यत: चावल उगाते थे | सन 1953 में ग्राम पंचायत का गठन हुआ | शैक्षणिक एवं तकनिकी रूप में अति पिछड होने के वजह से यहाॅ के निवासी बगैर किसी संरचना के अपने सुविधानुसार  मकान बनवाना शुरू किया | इन लोगों के मकान बनते समय ग्राम पंचायत ने अंकुश नही लगाया एवं साथ ही इनको तकनीकी जानकारी प्रदान करने की जहमत नही उठार्इ|
 
काशिमिरा से उत्तन गोरार्इ मार्ग को तत्कालीन ग्रााम पंचायत ने भवनों एवं कार्यालयों के निर्माण हेतू इस मार्ग के स्तर के ही मानक स्तर स्वीकार किया था  जो वास्तव में समुद्र  स्तर से नीचे है इस मार्ग का निर्माण अंग्रोजी हुकुमत द्वारा किया गया था |
 
         इस शहर में नये कारखानेां का दौर आया |  कारखानों के मालिकों ने अपने कर्मचारियों एवं तकनिशियनों को रहने हेतू अपने सुविधानुसार ह्मबिना किसी कायदे कानून का पालन करते हुए) मकानों का निर्माण करना शुरू किया | इन लोगों ने भी अंगे्रजी शासको द्वारा निर्मित मार्गो को ही मानक स्तर मानते हुए अपने कारखानों एवं भवनों का निर्माण किया था | अब बारी आयी देश्र महानगर के भवन निर्माताओं का जिन्होंने मिरा भार्इदर क्षेत्र को अपने व्यवसाय के लिए सर्वोत्तम मानते हुए भवन निर्माण के क्षेत्र मे दिन दुगना रात चौगुना तरक्की किया | यह दौर सत्तर के दशक से लेकर नगरपालिका बनने तक चलता रहा इस दौरान हजारो के तादाद में बगैर शहर संरचना के भवन निर्माण व्यवसाय फलता फूलता रहा | यहा^ यह बताने की आवश्यकता नही है कि इन हजारों भवन में मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखने की जरूरत नही समझी गर्इ | कारखाना मालिको एवं भवन निर्माताओं ने मिरा भार्इदर की जमीन कौडि,यों के भाव में खरीदते समय इस बात का भी ध्यान नही रखा कि जमीन का असली मालिकाना हक किसके पास है| भवन निर्माताओं ने महज डेवलपमेंट अधिकार मिलते ही भवन निर्माण कार्य शरू किया एवं सभी Fलैटों को एवं भवनो को मूलभूत सुविधाओं के बगैर ही बेच दिया | इन सभी क्रियाकलापो को अंजाम देते समय भवन निर्माताओं ने सारे कायदे कानून को ताक पर रख दिया |
 
        मूलभूत सुविधाओं मे पेयजल सडक एवं मलप्रवाह परियोजना की कमी है| यदि सडक एवं नालों का निर्माण ग्राम पंचायत ने करवाया भी था तो वह भी समुद्र स्तर से नीचे है जिस वजह से समुद्र में ज्वार भाटा के समय शहर का पानी शहर के बाहर नहीं निकल पाता है एवं शहर में जल जमाव की समस्या बनी रहती है| 
 
         इसका मुख्य कारण भवन एवं कारखानो के निमार्ण या संचरना करने वालों के पास अनुभवी वकील, सिविल इंजिनियर, आर्किटेक्ट एवं सी,ए, की कमी थी | जिन वकील, सिविल इंजिनियरों, आर्किटेक्ट, सी,ए, के पास अच्छे अवसर नहीं थे उनके लिए मिरा भार्इदर के निमार्ताओं के पास अवसर उपलब्ध हो गए | उनके लिए यह जगह काफी फलदायक साबित हुर्इ | निमार्ताओं को अब वित्तिय सहायक या पोषको की जरूरत हुर्इ| निर्मार्ताओं के सामने अधिक से अधिक मुनाफे वाले प्रोजेक्टस को लाने का आग्रह किया | भवन एव कारखाने निमार्ताओं ने अपने आर्किटेक्टो को कम बजट वाले प्रोजेक्टस तैयार करने को कहा | इन्हीं आर्किटेक्टो ने निवास स्थान के नीचे कानूनी व गैरकानूनी तरीके से दुकान का डिजाइन तैयार करके इन निर्माताओं को भरपुर फायदा पहुचाया | इस बात को अधिकारियो ने अनदेखा किया |
 
         अब एक बार फिर निर्माता र्ओं ने अपने यहा कार्यरत सिविल इंजिनियरो को बजट कम करने हेतू बाध्य किया | अपने मालिकों को खुश एवं अधिकतम मुनाफे हेतू आर्किटेक्ट के प्लानों में कटौती शुरू कर दी |
 
मीरा भार्इदर के तत्कालीन नगर पालिका के पास भी स्तरीय या अनुभवी सिविल इंजिनियर्स उपलब्ध नहीं थे | इसका भरपूर फायदा निमार्ताओं ने अपने प्रोजेक्टस पूरा करने में उठाया | प्रत्येक निमार्ताओं ने अपने स्टाफ के खाने पीने का ध्यान रखते हुए एक तत्कालीक जलपान गॄह को अपने ही प्रोजेक्ट में खाली स्थान पर शेड डालकर शुरू किया |
 
         अब इन निर्माता र्ओं के पास अपने फ्लेटस एवं कारखाने बेचने की समस्या आने लगी, इसका जवाब इन लोगो ने मुख्यत: मशहूर दलालों के पास नौकरी करने वाले स्टाफों को अच्छे प्रलोभनों के द्वारा अपने फ्लेटस एवं कारखाने को बेचने के लिए तैयार कर लिया | यह प्रक्रिया काफी सफल रही | मशहूर दलालों के स्टाफ ने भी मीरा भार्इदर में अपने पैर जमा लिए | इन दलालो ने अपनाकाम पुरा किया ही |कालांतर में यहाॅ के जमीनों के भी सौदों मे महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ| इन दलालो ने अपने पुराने मालिकों के साथ मिलकर दिग्गज भवन एवं कारखाने निमार्ताओं को भी मीरा भार्इदर का रास्ता दिखाया |
 
        उपरोक्त दलालो ने मीरा भार्इदर मे मुख्यत: निम्न एवं मध्यमवर्ग के लोगो को फ्लेटस एवं दुकाने (लघु  उदयोग ) खरीदने के लिए तैयार किया | इस वर्ग के पास किसी भी प्रकार का कानूनी एवं तकनीकी जानकारी उपलब्ध नहीं थी | इन जानकारियों के अभाव में निम्न एवं मध्यमवर्ग के लोगों ने मीरा भार्इदर में फ्लेटस एवं दुकाने खरीदते चले गए | इन लोगों के पास सरकारी कागजातों का भी ज्ञानकारी  नही था | इस प्रक्रिया को देखभाल करने वाले निमार्ताओं के सलाहगारो ने कानून का पालन नही किया | शासकों ने भी इसका ध्यान नही रखा या इसकी जरूरत नही समझी | इसका भी भरपूर फायदा निमार्ताओं ने उठाया जबकि नुकसान खरीदारों को आने वाले दिनों में होने वाला है| निम्न एवं मध्यमवर्ग के लोगों ने अपने गाढी कमार्इ के द्वारा खरीदे गए अपने दुकान एवं आशियाने में आए तो इनके सामने सडक एवं पानी की विक्रराल समस्या मुह बाए खडी थी |
 
         इन समस्याओं में एक कारण यहा राजनैतिक दलों का अभाव था, क्योंकि उन दिनों यहा महज एक व्यक्ति का ही प्रभाव था | इनके कार्यालय में ही मीरा भार्इदर के खास निर्णय लिए जाते थे| निर्माता ओं ने इसका भी फायदा उठाया | उन दिनों के दर्ज आपराधिक मामलों में इसका उल्लेख आपको मिलेगा |
 
          1970 के दशक मे मिरा भार्इदर के इतिहास मे दो नए चेहरो का उदय हुआ | यह दोनो व्यक्ति पढे लिखे थे इनमे से एक व्यक्ति ने भार्इदर और दूसरा व्यक्ति ने काशीमीरा मे अपने अपने पैर पसारने लगे | इनमे से एक व्यक्ति ने पूर्णरूप से राजनैतिक सहारे के साथ  भवनो का निर्माण कार्य शरू कर दिया क्योकि यह व्यक्ति आर्थिक रूप से सुदॄढ था | दूसरे व्यक्ति ने आपराधिक ताकतो का सहारा लेते हुए राजनैतिक लाभ उठाया एवं तबेलों के निर्माण मे सहयोगी बने | इन्होने एक नीजी विद्यालय की भी शुरूआत की इस व्यक्ति ने अवैद्य भवन निर्माताओं से धन उगाही का काम तो किया ही साथ ही साथ वैद्य कारखानाओं के मालिको से जबरन धन वसूली के कारोबार की शुरूआत कर दी | इसप्रकार मिरा भार्इदर मे धन वसूली कारोबार मे इस व्यक्ति की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है| इस बात की पुष्टि उन दिनो के काशीमीरा पुलिस स्टेशन मे दर्ज आपराधिक मामलों मे उल्लेखनिय है|
 
         उपरोक्त दोनो व्यक्तियों के कार्यकाल मे मुंबर्इ से छोर्टे बडे भवन निर्माता एवं कारखाना मालिको का आगमन मीरा भार्इदर मे काफी तेज हुआ | दहिसर चेक नाका से लेकर घोडबंदर एवं काशीमीरा से पूरे भार्इदर क्षेत्र मे वैद्य एवं अवैद्य कारखानाओ के साथ तबेलो का निर्माण कार्य मे तेजी आ गर्इ| जिन भवन निर्माताओ ने अपने कारीगरो एवं अभियंताओ के खाने पीने हेतू शेड डालकर अवैद्य जलपान गॄह का निर्माण किया था, इन अवैद्य शेडो को चलाने वालो ने इसे रेस्टोरेंट मे परिवर्तित कर दिया | मिरा भार्इदर मे वैद्य एवं अवैद्य तबेलो का व्यापार भी फलने फूलने लगा | मिरा भार्इदर मे होटल व्यवसाय के बढते अवसर को देखते हुए होटल व्यवसायिकों ने इस क्षेत्र के तरफ आना शुरू कर दिया |
 
         इसी प्रकार तत्कालीन सभी राजनीतिक पार्टियों ने भी इस क्षेत्र के बढते एवं असंगठित आबादी को नजर मे रखते हुए अपनी अपनी जमीन तलाशने लगे| उस दौरान सभी दलो ने अपने मुखिया र्इमानदार एवं लायक व्यक्तियों को नही बनाते हुए ठीक इसके विपरीत किया | जिसके नतीजो का विवरण आनेवाले भाग मे मिलेगा | अब राजनीतिक पार्टियों को आर्थिक जरूरत हुर्इ जिसे पूरा करने मे इन दलो के मुखियाओं ने उस समय के प्राप्त अवसरों का भरपूर फायदा उठाया | इन दलो के बुदॄधिजीवी राजनेताओं ने अपने पद का फायदा उठाते हुए कानूनी ढंग से भी भरपूर लाभ उठाने के रास्ते ढूढ लिए उदाहरणार्थ दूध बिक्री की एजेंसी, अखबार की एजेंसी, केबल टीवी  एवं कर्इ महत्त्वपूर्ण कंपनियों के एजेंसी के साथ इन बुदॄधिजीवीयों ने दैनिक उपयोग मे आनेवाले सामानों की भी एजेंसीया आपस मे बाट ली | उन दिनो इस क्षेत्र मे मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव था | यातायात एवं पीने के पानी के साथ बिजली का खासा अभाव था | 
 
         पानी जैसी मूलभूत सुविधा का हनन होने पर और राजनीतीक  दलो का इस व्यापार मे मजबूत पकड से उनमे आपस मे विवाद प्रारंभ हो गया |  इस कमबद्ध सिलसीले से कर्इ नये चेहरे सामने आने लगे| इसमे मुख्य रूप से एक नया चेहरा काफी तेजी से उभर कर शशक्त रूप से लोगो के सामने आया |  नतीजन राजनीतीक  माहौल के साथ व्यवसायिक वर्ग  ने भी इन नये चेहरे का स्वागत किया | और नये चेहरे ने भी अपनी अदा से हर क्षेत्र मे अपनी पकड काफी मजबूत किया |
 
          अत: 1980 के दशक मे दो पूराने चेहरे एवं एक नये चेहरे के अस्तित्व की लडार्इ ने एक नये कार्ले युग की शुरूवात की | एवं अपराधिक दुनिया के लोगो को मीर्रा भार्इदर का रास्ता दिखाने का शुरूवात भी इसी समय हुआ | जमीन की सौदेबाजी से लेकर होटल, बिल्डर, जैसे हर व्यवसाय मे इनका हस्तक्षेप एवं नेतॄत्व होता रहा | राजनैतिक एवं व्यवसायिक सुदॄढ तीनो विशेष व्यक्तीत्व के व्यक्तियों ने इस कदर अपने प्रभाव से प्रशासन को प्रेरित  कर दिया की जिल्हा कलेक्टर, पुलिस प्रशासन और ग्राम पंचायत के कर्मचारी एवं अन्य सरकारी दफतर ने आवश्यक कानूनी तरीको या कानूनी जरूरतो को पुरा करना उचित नही समझा और शासन भी अनदेखा करने लगे|
 
नतीजन, सेंकडो इमारते नियमो  को ताख पर रखकर बनाए गया | आज भी कर्इ इमरते अतिगंभीर अवस्था मे दिखार्इ देती है| बिना सरकारी दस्तावेज एवं अर्धकानूनी  कय – विकय दस्तावेज के कारण ऐसी इमारते आज भगवान भरोसे है | सरकार सभी प्रकार का टैक्स वसुल कर रही है| जैसे – रोड टेक्स, इलेक्ट्रीकसीटी टेक्स, प्रोपर्टी टेक्स एवं अन्य प्रकार का बी|एम|सी| टेक्स |  लेकीन आम जनता की आर्थिक एवं जानमाल की हानी की जिम्मेदारी लेने से सरकार एवं उनके उपकम क्योकि अव्यवस्थित है| इस विषय को लेकर कोर्इ भी स्थानिय नागरिक जागरूक भाषा मे बात तक करने से डरते है| और अगर आगे इस अव्यव्स्थिता के बारे मे जानने आते भी है तो  इस विषय को दबा दिया जाता है|
 
         इसका पहला मुख्य कारण शासन ने मीरा भार्इदर को ग्रामीण क्षेत्र का दर्जा दिया है| और दुसरा कारण शासनिक अधिकारी की नियुक्ती योग्यता अनुसार नही हुआ | मुम्बर्इ से नजदीक होने के कारण सारे सामाजिक एवं आर्थिक अपराधिक लोग अपने मनपसंद जगह मीरा भार्इदर को ही चूनते रहे है| अत: एक अर्थ मे शुरू से ही मीरा भार्इदर का नेतॄत्व अपराधिक लोगो के हाथ मे ही रहा है|
 
         मीरा भार्इंदर में, व्यवसायिक एवं अन्य सभी बढे हुए अवसर को देखते हुऐ राजनैतिक दल एवं व्यावसायिक दल सभी अपने अपने कमर कसने लगे | व्यापार एवं राजनैतिक व्यवस्था मे कर्इ नए चेहरे दिखने लगे और विभिन्न व्यापार एवं विभिन्न दलो के कर्इ नए चेहरे ने हस्तक्षेप करना प्रारंभ किया| नतीजन कर्इ नए समुह का निर्माण हुआ ये समुह अपने अपने संघ के लिए कार्यरत थे| हर गलत सही काम को अंजाम देते थे| जनसंख्या के आधार पर सिक्यूरीटी, केबल कनेक्शन, दूध सप्लार्इ, बिल्डींग मटेरियल सप्लार्इ, पेपर सप्लार्इ जैसे सारे व्यवस्था का क्षेत्रिय बटवारे से लेकर व्यावसायिक क्षेत्रिय अधिपत्य का बटवारा प्रारंभ हो गया |
 
       मीरा भार्इदर के बाहर से जो भवन निर्माता या व्यवसाय करने वाले आते थे उनका आधार इस बात पर निर्णायक होता था , कि व्यवसायिक क्षेत्रिय अधिपत्य किसके पास है एवं ताकतवर समुह कौन है|  इस प्रकार से संपर्क मे आकर सहायक का सहारा लेते हुए व्यवसाय प्रारंभ करते थे| इस प्रकार 85र्  90 के दशक मे मुख्य रूप से प्रमुख राजनितीक दल का सहारा लेते हुए,  एक सशक्त नये चेहरे उभर कर साफ साफ लोगो को नेतॄत्व करने लगा | ये चौथा चेहरा सशक्त था एव्ंा अन्य पा^चर्  छ: चेहरे इनके इर्द गिर्द इनके सहायक के रूप मे कार्यरत थे एवं इनके हर कार्य को अंजाम देते थे प्रमुख राजनितिक दल का सहयोग होने के कारण नकारात्मक एवं सकारात्मक हर काम को रूप दिया | 
 
           अत: पुराने तीन ताकतवर चेहरे मे से सिर्फ एक ही चेहरे ने नये ताकातवर चेहरे को चुनौती दिया | इसी समय ग्राम पंचायत का रूप नगर परिषद मे तबदील हुआ और जनसंख्या 4 लाख के करीब था | एवं नगर का विकास कायदा अनुसार होना था लेकिन मुख्य रूप से दो लोगों ने एवं अन्य 7र्  8 लोगो ने अपने सोच के हिसाब से नगर पालिका के कार्य को रूप देने लगे क्योकि जितने भी शासकीय कर्मचारी की नियुक्ती हुर्इ  वे सभी नियमानुसार नही था इनको ये सशक्त लोग ने दबाव मे लाकर अपनी सोच से जरूरत पुरी करने लगे|
 
            इसका फल यह हुआ की अनेक इमारत एवं 90त् ठेकेदारी सभी इन लोगो के प्रभाव से हुआ जो गैरकानूनी था अत: अराजकता फैल गयी |  उदाहरण के तौर पर अराजकता इस कदर हुआ की भवन निर्माताओ ने एकर्  एक Fलेट दोर् दो लोगो को बेचने लगे और एक Fलैट पर तीनर् तीन ब^कों से कर्ज लिया जिससे वहा^ के रहिवासी आज तक इस दर्द से बाहर निकल नही पा रहे है| भवन निर्माताओं ने गॄहनिर्माण कानून का उल्लंघन किया ,जिसके चलते बने हुए भवनेां को सरकार की मान्यता न मिलने से स्थानिक रहिवासी सडक, बिजली, पीने का पाणी इन सारे प्राथमिक सुविधाओं से वंचित रहे है|  मीरा भार्इदर मे  ऐसी समस्याओं की तादात बढने की वजह से सारे सरकारी ब^कों ने इस शहर मे दी जाने वाली लोन सुविधा बंद कर दी |
 
          मीरा भार्इदर शहर के सरकारी बंैकों के द्वारा दिए जानेवाले हाउसिंग लोन बंद करने के कारण इस शहर में प्राइवेट बैंको का तेजी से आगमन प्रारंभ हुआ | नतीजतन रहिवासियों को राहत मिली परंतु इसका फायदा दलाल के रूप में काम करने वाले लोगो ने बहुत कम पू^जी लगाकर भवन निर्माण शरू किया | इस प्रक्रिया का फायदा उठाते हुए मिरा भार्इदर शहर के वकीलों, चार्टड एका}^टेन्ट, आर्किटेक्ट एवं छोटे स्तर के कर्इ ठेकेदारों ने आम जनता को गुमराह करते हुए हजारो की तादाद मे भवन निर्माण शुरू किया | इन लोगो मे से कर्इ आज इस शहर के नामचीन भवन निर्माताओ की श्रेणी में आते है|
 
         उस समय इन भवन निर्माताआंे ने जिन भवनो का निर्माण किया उसमे भवन निर्माण से संबंधित कायदे कानून को ताक पर रखते हुए महज पच्चीस फीसदी भी सरकारी कायदे कानून का ध्यान नही रखा एवं आम जनता, जो सरकारी कायदे कानून से अंजान थी, इनको अपने अवैद्य भवनो मे खुन पसीने की कमार्इ द्वारा जमा की गर्इ धन से Fलेट खरीदवाने मे महत्वपूर्ण भूमिका अदाकी इन अवैद्य  भवनो के निर्माण मे लिप्त भवन निमार्ताओ ने तब के कार्यरत सरकारी अधिकारी एवं बैक कर्मचारिर्यों का भरपूर फायदा उठाया |
 
        अवैद्य भवन निर्माण मे निमार्ताओ ने महज डेवलपमेंट अधिकार लेते हुए भवन निर्माण कार्य करते हुए दलालो के साथ मिलकर आम जनता को फंसाया | नतीजा यह हुआ कि यह भवन गिरने के बाद इसका रिडेवलपमेंट करना भी असंभव दिखार्इ देता है क्योकि इन भवनो के निर्माण के समय निर्माण संबंधी कायदे कानूनो को ध्यान मे नही रखा था |
 
        उपरोक्त सभी तथ्यो का ताजा उदाहरण मीरा रोड के सेक्टरर्  4 मे बिंल्डींग नं|10, आकाश शांतिनगर को|हा^|सो|लि| का है| जिसे दो वर्ष पूर्व मनपा ने रहने के योग्य नही बताया था | परंतु इस भवन मे तीन गरीब परिवार रहते थे| दिनांक 30|11|2010 को इस भवन के दो स्लैब गिरने के बाद पुन: मनपा अधिकारियो ने जल्द से जल्द भवन को सील कर दिया |
 
         इस घटना के बाद आज तक इस शहर के किसी भी राजनितिक पार्टी, नेता, भवन निर्माता या कोर्इ भी सरकारी अधिकारी ने फोटो निकलवाने के सिवाय किसी भी प्रकार की सहायता इस भवन के रहिवासियों को मुहैया कराने की कोशिश तक नहीं की है|
 
        इस घटना के बाद इस क्षेत्र के तमाम रहिवासी एवं अन्य हा}सिंग सोसायटीया^ इस दुविधा मे है कि अगर भविष्य मे इनके भवन या सोसायटी के साथ इस तरह की घटना होती है तो इसका जिम्मेदार कौन होगा एवं इसका निदान क्या होगा |
 
          इसका एक मुख्य कारण यह है की, इन सभी बातो की जानकारी मकान खरिदारो को नही थी | अधिकारीयों को इसकी जानकारी देनी चाहिए थी | वे लोग इन सभी बातो को समझना न चाहे या अनदेखा करते रहे| इसका फायदा उठाते हुए केवल भवनो का निर्माण ही नही हुआ बल्कि होटल, कारखाना, विद्यालय, निजी अस्पताल इन सभी इमारतो का निर्माण किया गया | जिसका परिणाम यह हुआ की इन सभी इमारतो को पानी, बिजली और सडक की सुविधा महानगर पालिका के द्वारा दिया गया |
 
          यह सभी सुविधाए^ आसानी से मिलने के कारण मकान खरिदारो ने अन्य कोर्इ भी जानकारी प्राप्त करना जरूरी नही समझा, और सारी बाते कर्इ वर्षो तक कानून के नजरो से छुपी रही | आज मीरा भार्इदर की आबादी लगभग  15 लाख के करीब है| इसी शहर मे बनी हुर्इ बहुसंख्यक इमारते सोसायटी बन चुकी है लेकिन आज भी इन सभी इमारतो मे कायदे कानून की बातो का अभाव है| आनेवाले समय मे जो भी नतीजे होगे वह मकान मालिको को झेलने पडेगे| किसी भी राजनैतिक पार्टी या सामाजिक संस्था इन महत्वपूर्ण विषयो पर जनता का ध्यान आकर्षित नही कर पा रही है|
 
            लेकिन 2008 में महानगरपालिका के चुनाव के बाद अविश्वसनिय तौर पर एक और नया चेहरा अचानक लोगो के सामने आया | 2010 मे इस चेहरे ने एक मुख्य राष्ट्रीय पक्ष के बैनर द्वारा अपनी ताकद का प्रदर्शन किया | और इस प्रकार मिरा भार्इदर के चरित्र मे एक और अस्तित्व की लडार्इ शुरू हुर्इ|   
 
           पिछले ढेड साल से सहकार भारती एकमात्र सामाजिक संस्था  है | जो इस विषय पर लगातार काम करती आ रही है| कोर्इ भी जागॄक नागरिक इस विषय से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी वेब साइट  में  देख सकते है|
 
          हम शासन को भी इस महत्वपूर्ण विषयो की जानकारी हमारे लेख के माध्यम से पहुचाना चाहते है| महानगर पालिका के मुख्य शासन अधिकारी मीराभाईदंर  नगरापालिका के आयुक्त है। उनसे विनती यह है की इस विषय पर अधिक गंभीरता पूर्वक विचार करे।महानगर पालिका के माध्यम से जनता को चेतावनी व जानकारी देना महानगर पालिका के कर्तव्य भी है और अधिकार भी है| जितनी भी इमारतो मे महानगर पालिका द्वारा कर वसूल किए जाते है, उन सारी इमारतो की जा^च करके सभी आवश्यक कागज पत्रो का परिक्षण करे, और निश्चित करे की किन इमारतो मे आवश्यक कागज पत्रो का आभाव है| जिनर्  जिन इमारतो मे जरूरी सरकारी कागज पत्र नही है उनका परिक्षण करके बडे पदाधिकारियों को सुचित करे|
 
           इसका ताजा उदाहरण आज मीरा भार्इदर मे मौजुद है  मीरा भार्इदर के रहिवासी सी – 10, शांती नगर, आकाश को ओ सोसा के लोग आज रास्ते पर आ गये है इसका जिम्मेदार कौन है ? भविष्य मे ऐसी घटना दोबारा न हो इसका अभी से शासन और मकान मालिको को इस विषय मे आवश्यक सतर्कता बरतनी होगी।
 
          लेकिन किसी भी सहकारी अधिकारी को कानूनी तरिके से सौ प्रतिशत दोषी नही मान सकते, क्योंकी सारे अधिकारी बदलते रहते है। इसलिए ज्यादारत इत्यादी बातो का जिम्मेदार पिडीत ही होते है। कानून के नजर मे अन्य लोग भी दोषी होंगे लेकिन, उन सभी पहलूओ को जाचना कर्इ वर्षो तक सरकारी अलग – अलग दफतरो के द्वारा होनेवाला काम है| इसलिए इन सभी बातो का यही निराकरण होगा की मकान मालिक मकान खरिदने से पहले खुद ही जाच पडताल करके सारी चीजों की जानकारी प्राप्त करने के बाद ही मकान खरिदने की सोचे सिर्फ भवन निर्माताओ के नाम पर मकान न खरिदे, ऐसा करने से भविष्य मे इत्यादी बातो से सुरक्षित रह सकेगे।
 
          जब एक भवन निर्माता, भवन निर्माण करता है, तो उसे विभिन्न प्रकार के विभागो से प्रमाण पत्र लेने पडते है। इसलिए आप एक अधिकारी को दोषी नही ठहरा सकते अगर शासन इन सारे चीजों को हर एक विभाग से प्रमाणपत्र पूरा होने के बाद ही भवन निर्माण शुरू करने का आदेश देती है तो किसी भी व्यक्ति को परेशानी नही होगी  99 फिसदी भवन निर्माता शुरूवाती प्रमाणपत्र मिलते ही भवन बेचना शुरू कर देते है, क्योंकी वो भवन बनाते समय अपनी पूजी ज्यादा न लगाते हुए मकान खरिदारो से पूजी लेकर आगे का काम चलाते है, और इसलिए सारे लोग एक दूसरे के सहारे चलने लगते है।
 
        भवन निर्माता पहले ही बुकींग राशि लेते है | बुकींग राशी देते ही खरिदार मकान खरिदने के लिए मजबूर हो जाते है, फिर खरिदार बैको के पास कर्ज उठाने के लिए भागने लगते है| कुछ कागजो का अभाव होने के कारण भी बैक कुछ शर्तो पर कर्ज उठाकर निर्माता को खरिदार पूजी देते है और जल्द से जल्द अपने मकान मे रहने भी लगते है लेकिन जब अधिभोग प्रमाणपत्र देने का वक्त आता है तो प्रशासन अलगर्  अलग कागजपत्र मे डाल देती है । इसी तरह 95 फिसदी मिरा भार्इदर मे होते आया है।
 
        हमारी यह प्रशासन से सुझाव है की जो मकान खरिदार 20 साल से जिस मकान मे रहते है उन्हे अधिभोग प्रमाणपत्र देकर उनकी समस्याओ से मुक्ति दे| और हम मकान खरिदारो से यह भी कहना चाहते है की, मकान खरिदते समय सतकर्ता बरते, क्योंकी मिरा भार्इदर मे ज्यादातर मध्यमवर्गीय लोग रहते है| उनके लिए अपने जीवनकाल मे मकान खरिदना बहुत ही बडी बात होती है| जनता के दिलो से खिलवाड न करते हुये प्रशासन और भवन निर्माताओं से यही कहना है की अपने स्वार्थपूर्ण राजनीति से भवन खरिदारो को दूर रखे | और कोर्इ ऐसा रास्ता बनाए जिससे, प्रशासन भवन निर्माता और मकान खरिदार ये तीनो को कम से कम परेशानी हो|
 
          मिरा भार्इदर के Fलैट खरीदार भी इस बात की जानकारी नही लेना चाहते है कि क्या उनके बिल्डींग को ओ|सी|मिला है या नही ऋ यदि नही मिला है, तो किन कारणों के वजह से  म|न|पा| ने उनकी बिल्डिंग का ओं|सी|जारी नहीं किया है| इस संदर्भ में ऐसा प्रतीत होता है कि Fलैट मालिको में जगरूकता का अभाव है, ओं|सी|न मिलने के लिए म|न|पा|अधिकारी व भवन निर्माता के साथ साथ Fलैट मालिक भी जिम्मेदार है|
 
         मिरा भार्इदर में लगभग 4,800 रजि|हाउसिंग सोसायटी द्वारा या उनके विरूध सहकारी न्यायालय में लगभग 15,000 मुकदमे चल रहे है| इन मुकदमों में अधिकतर हा}सिंग सोसयटीयो के पास म|न|पा|द्वारा जारी किए गए ओं|सी|नहीं है फिर भी किस कायदे के तहत यह मुकदमे दायर किए गये है ऋ और का^परेटिव हौ|सो|मे किस धारा के तहत मुकदमे स्वीकॄत हुए है ऋ
 
         उपरोक्त मुकदमों मे होने वाले हर प्रकार के खर्चो को कौन वहन करता है ऋ शासन या को|हौ|सो| यह भी जा^च का विषय है| सहकार न्यायालय, पोलिस स्टेशनों, जिला न्यायलय, उच्च न्यायालयों में स्वीकॄत मुकदमो के संदर्भ में यह बताना आवश्यक है कि इन मुकदमो कोे लडाने वाले शासकीय तंत्र एवं खर्चो का हिसाब किताब तो दूर की बात है, मूल कारण बिल्डींग का ओं|सी|है यदि बगैर ओं|सी| प्राप्त की गर्इ बिल्डिंगो का मुकदमा सहकारी न्यायालय व पोलिस स्टेशन में किस आधार पर मुकदमा दर्ज करती हैऋ यह जा^च का विषय है|
 
        अवैध भवन निर्माता भी इस तथ्य से पूर्णतया वाकिफ होते है कि हमारे भवन को ओं|सी| म|न|पा| द्वारा यदि नही भी दिया गया तो एक या दो वर्षो के अंदर उनके भवन को रजिस्ट्रार द्वारा को|हौ|सो|लि|बना दिया जाएगा । इन भवन निर्माताओं द्वारा निर्मित्त भवनो, के Fलैट मालिक भी निश्चित रहते है कि यदि एक बार हमारे भवन, को हौ सो लि  बन जाए तो उसके बाद सहकारी न्यायालय का रास्ता खुल जाएगा उसके बाद तो जिला न्यायालय, उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय का रास्ता खुदब खुद मिलने लगता है।
 
         म|न|पा| प्रशानस को, Fलैट मालिकों को ओं|सी देने की प्रक्रिया के विषय में जागरूकता लाने के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए, जिससे कि सहकारी न्यायालय, पोलिस स्टेशन एवं अन्य न्यायलयों में अवैध भवनो के निर्माण के विषय पर मुकदमा दर्ज या स्वीकॄत न हो| इससे शासन के खर्चे एवं शासकीय तंत्रो का नुकसान बचाया जा सके।
 
          महाराष्ट्र के सन्मा| राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विपक्ष नेता, व अन्य सभी राष्ट्रीय पक्ष के नेतागण और सभी मंत्रीयो से निवेदन यह है। की इस महत्वपूर्ण विषय की ओर गंभीरतापूर्वक ध्यान दे और साथ ही मिरा भार्इदर के लिए कायदेनुसार एक नर्इ योजना का निर्माण करे। जिससे की यहा जितने भी गैरकानूनी इमारते है उन्हे कानून के घेरे मे लाया जा सके| जिससे की यहा^ के रहिवासी शांतिपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके| ताकी भविष्य मे फिर से आगे कोर्इ भी विकासक गलत तरीके से अपने विकास को बढावा न दे सके।
    धन्यवाद||  

 

मिरा भार्इदर की समस्यायें भाग २
       सन २००० के शुरूआत में ही मिरा भाईंदर पुनः एक बार इतिहास दुहराने की तयारी कर रहा था इसी क्रम में इस शहर ने एक नये तरहके राजनेता को उभरने का मौका दिया, जिसने पूर्व के सभी राजनेताओं को नये राजनिति का पाठ पढ़ाना शुरू कर दिया। एक बार फिरमिरा भाईंदर के नागरिक अपने आप को ठगें जाने के लिए तैयार हो गये, शहर के नागरिकों को छलें जाने का शंखनाद हो चुका था। इस शहर में राजनितिक रोटी सेकने वाले नेताओं को यह भान नहीं हो पाया कि कालांतर में यह व्यक्ति इस शहरको किस दिशा में मोड़ेगा।     

अपने शहर के महाराष्ट्रसरकार द्वारा सन २००२ में महानगर पालिका क्षेत्र का दर्जा दिया गया। महानगर पालिकादर्जा प्राप्त होने के बाद यहाँ के भ्रष्ट अधिकारीयों तथा राजनेताओं ने नागरिकसेवा के रूप में यहाँ के नागरिकों को सुविधा तो मुहैया नहीं करवाई लेकिन मिराभाईंदर की जनता पर लगने वाले पुराने टैक्स में वृद्धि जरूर कर दी।  

२००७ में दो निर्दलीय  नगरसेवकों ने महापौर पद की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते हुए एक  निर्दलीय नगरसेवक महापौर बन गया, इसखेल में कई राजनितिक पार्टीयों ने इनकी मदद की। उसके बाद तो शहर  के इस महापौर ने अपने कार्याकाल में अवैधनिर्माणों को फलने फुलने को सुनहरा मौका प्रदान किया तथा मिरा भाईंदर शहर को टी.डी.आर के लिए मोहताज कर दिया। इस शख्स ने फिर एक राजनितिक पार्टी  का सहारा लेते हुए जिलाध्यक्षभी बन गया।

सन २०११  में पुनः महाराष्ट्र  सरकार ने मिराभाईंदर वासियों को इस क्षेत्र से दो आमदार चुनने का मौका दिया। शहर के तमाम बड़े एवं दिग्गज नेताओं ने अपने अपने टिकट एवं गठबंधन की स्थिती में अपनी पार्टी के लिए  दिल्ली दौड़ शुरू कर दिया। मिरा भाईंदर शहर के तत्कालीन महापौर को भी एक राजनितिकपार्टी ने अपने नियम या विचारधारा के विपरित हुए टिकट दिया, किंतु २०११ के विधानसभा चुनाव में मिरा भाईंदर के तत्कालिन महापौर को शहर की जनताने नकार दिया।

सत्ता के इस खेल में मिराभाईंदर कि जनता को कैसे बेवकूफ बनाया जाता है? इस सवाल का बेहतर जवाब इन सत्ता के दलालों के अलावा किसी के पास नहीं हो सकता हैंक्योंकि किसी भी राजनितिक पार्टी ने मिरा भाईंदर शहर की आम जनता के मकानों की समस्या के तरफ ध्यान देना उचित नहीं समझा है, यह अलग बात है कि यहाँ के नेताओं ने नाले, सड़कों एवं फुटपाथ पर टाइल्स लगवाने का कार्य जरूर किया एवं इस बात के श्रेय लेने के लिए पोस्टर / बैनर इत्यादी लगवाते है।

मिरा भाईंदर के नागरिकों को यह समझ में नहीं आता है कि, क्यों एक नगरसेवक/  आमदार को उनका जन्मदिन याद रहता है लेकिन उनके क्षेत्र में गिरी हुई इमारतों की तारिख का ध्यान नही रहता? यदी उन्हे क्षतिग्रस्त इमारतों के तारिखों  का ध्यान रहता तो वह जरूरअपने क्षेत्रों के गिरे हुए / क्षतिग्रस्त इमारतों के पुर्ननिर्माण हेतू प्रयास काभी बखान पोस्टरों या बैनरों द्वारा जरूर करते।

मिरा भाईंदर शहर में कम से कम १० को.ओ.हॉ. सोसाइटियों को मिरा भाईंदर महानगर पालिका ने “धोकादायक”घोषित किया था, लेकिन म.न.पा. के भ्रष्टअधिकारियों तथा भ्रष्ट नगरसेवकों ने इन सोसाइटियों के पुर्ननिर्माण हेतू तमाम अडंगे लगाने में अपनी तत्परता दिखाते समय यहाँ की जनता को यह बताया कि हमलोग नियमके अनुसार ही कार्य करते हैं।  जबकि मिरा भाईंदर महानगर पालिका के व्यापक भ्रष्ट्राचार का उदाहरण इस शहर के कई स्कूलों एवंअस्पतालों के निर्माण के रूप में देखा जा सकता है।

मिरा भाईंदर शहर की आबादीभी दिनों दिन बढ़ती जा रही है, इस बढ़ती हुई आबादी एवं नये लोगो के विशाल जन समूह के कुछ वर्गों एवं एक धर्म विशेष के वोटरों ने सन २०१४ के विधानसभाचुनाव  में इस शहर के एक राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवार को जितवाने में अहम भुमिका निभाई। इस शहर के सड़कों एवं नालों के निर्माण के समय महानगर पालिका के भ्रष्ट अधिकारीयों के साथ मिल कर यहाँ के भ्रष्ट नेताओंने अपने-अपने घरों एवं व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को बचाने में कामयाब रहे। सरकारीअधिकारियों के साथ नेताओं का भी भ्रष्ट्राचार को बढ़ावा देने का एक नया किर्तीमान स्थापित हो गया।

मिरा भाईंदर शहर मेंस्कूलों की कमी का कुछ लोगों ने भरपूर फायदा उठाते हुए विद्यालय के नाम पर दुकानदारी शुरू कर दी। बाद में कुछ नामी गिरामी बिल्डरों के साथ साथ छुटभैयेबिल्डरों एवं  नेताओं ने इसे रोजगार के रूप में देखना शुरू किया जबकि यहाँ के नागरिकोंके पास शिक्षा के गुणवत्ता मापने का कोई पैमाना नही था। धीरे-धीरे इस शहर में स्तरहीन शिक्षा के विद्यालयों का उदय होने लगा।

शिक्षा माफिया अपने विद्यालयों के विद्यार्थीयों के प्रतिभाओं से भलि-भांति परिचित थे इस लिए उन्होंनेमहाविद्यालयों तक की स्थापना कर डाली ,यह बात और है कि कुछ लोगोंने अभियंत्रिकी महाविद्यालय भी शुरू किए ताकि समय के साथ दौड में बने रहें।

महानगर पालिका का दर्जाप्राप्त होने तक इस शहर में गिनती के बार, डाँसबार तथा लॉजिंग बोर्डिंग थे लेकिन इस खेल के महान खिलाड़ियों ने भी मिरा भाईंदर महानगर पालिका में फैले व्यापक भ्रष्टाचार का भरपूर फायदा उठाते हुए इस शहर को बार, डाँस बार एवं लॉजिंग बोर्डिंग का अड्डा बना दिया, इन व्यवसायियों को स्थानिय राजनेताओं, म.न.पा. एवं पुलिस के भ्रष्ट अधिकारीयों का भी संरक्षण प्राप्त है।

मिरा भाईंदर मुंबई से सटेहोने के कारण यहाँ कुछ ऐसे भवन निर्माता भी आए जो मिरा भाईंदर महानगर पालिका के नगर रचना विभाग से कार्य शुरू करने का आदेश / प्रमाण पत्र मिलने के पहले ही भवन को तैयार कर लेते थे क्योंकि अधिकारी एवं राजनेता भी निर्माण कार्य में सहभागी थे।

इस शहर ने अनोखे अनोखेकिर्तिमान स्थापित किए हैं उदाहरणार्थ समाचार पत्र के संपादक बनना, पत्रकार, शाखा प्रमुख,नगरसेवक एवं इस्टेट एजंट से बिल्डर बनना तथा आठवी पास होकर महाविद्यालयों के संस्थापक बनना इत्यादी।

इस शहर के बढ़ती आबादी कोदेखकर या ध्यान में रखते हुए यहाँ विद्यालय , बार, डाँस बार एवं लॉजिंग बोर्डिंग व्यापार तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि नब्बे के शुरूआत में सरकारी आंकडों के अनुसार यहाँ की आबादी ३ लाखथी, नब्बे के अंत तक में लगभग सात लाख तक पहुँच गई थी जो आज लगभग 12 लाख के आस पास हो गई है।

मिरा भाईंदर शहर में जमीनमालिकों एवं भवन निर्माताओं ने मिलकर एक नए खेल की शुरूआत कर दी, जिसे फ्लैटखरीदारों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा। कुछ नामचीन भवन निर्माताओं केभवनों को तोड़ा गया जबकि इन भवनों में रहने वाले लोगों ने महाराष्ट्र सरकार को स्टैंप ड्यूटी एवं रजिश्ट्रेशन के रूप में लाखों रूपये अदा किए थे। आश्चर्य की बातयह है कि फ्लैट धारकों को मुसीबत में डालने वाले जमीन मालिक , भवन निर्माताओं एवं म.न.पा. तथा महाराष्ट्र शासन के किसी भी अधिकारीयों पर किसी तरह की आर्थिक या कानुनी कारवाई नहीं की गई।

इस शहर के अधिकांश जमीनों के मुल मालिकों का भवन निर्माताओं से किसी न किसी कारण वश कानुनी मुकदमे चल रहे है,जमीन मालिकों को भवन निर्माताओं द्वारा भुगतान नहीं करना तथा फर्जी तरीके से ७/१२ से मुल मालिक का नाम हटाकर अपने या अपने पसंदीदा व्यक्ति के नाम को  चढ़वाना इसका मुख्य कारणों मे से एक है। इस खेल को स्थानिय राजनेताओं, महाराष्ट्र शासन एवं  मिरा भाईंदर महानगरपालिका के भ्रष्ट अधिकारीयों ने मिलकर फलने-फुलने का मौका दिया है। इस वजह से मिराभाईंदर महानगर पालिका क्षेत्र के लगभग ६ हजार मुकदमें निचली अदालतों से लेकर माननीय उच्चतम न्यायालय ने वर्षों से लंबित है एवं जमीन के मुल मालिकों को अपने एवं अपने परिवार के  भरण पोषण हेतू इन भ्रष्ट भवननिर्माताओं (अवैध निर्माण) के यहाँ वाचमैन,सफाई कर्मचारी, घरोंमें चौकीदार एवं घरकाम करना पडता है, जबकि भवन निर्माताओं , म.न.पा. तथा  महाराष्ट्र शासन के भ्रष्ट अधिकारी करोंडों रूपयों की कमाई कर लेते है।

आने वाले समय में देश केचर्चित “कैंपा कोला सोसाइटी” जैसी घटना मिरा भाईंदर शहर मेंही दुहराई जाएगी।

राजन वासु नायर ।